Saturday 15 April 2017

आस का पंछी

कोमल पंखों को फैलाकर खग नील गगन छू आता है।
हर मौसम में आस का पंछी सपनों को सहलाता है।।

गिरने से न घबराना तुम  गिरकर ही सँभलना आता है।
पतझड़ में गिरा बीज वक्त पे नया पौध बन जाता है।।

जीवन के महायुद्ध में मिल जाए कितने दुर्योधन तुमको।
बुरा कर्म भी थर्राये जब रण में अर्जुन गांडीव उठाता है।।

टूटे सपनों के टुकड़ों को न  देख कर आहें भरा करो।
तराशने का दर्द सहा तभी तो हीरा अनमोल बन पाता है।।

     #श्वेता🍁

4 comments:

  1. "हर मौसम में आस का पंछी सपनों को सहलाता है"
    वाह ! वाह ! क्या कहने हैं ! बहुत खूब !

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    1. आभार बहुत आभार आपका राजेश जी।तहे दिल से शुक्रिया आपका।

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  2. जीवन के महायुद्ध में मिल जाए कितने दुर्योधन तुमको।
    बुरा कर्म भी थर्राये जब रण में अर्जुन गांडीव उठाता है।।
    हृदय को स्पर्श करती पंक्तियाँ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ध्रुव जी आपकी सराहना के लिए शुक्रिया आपका।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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