Wednesday 19 April 2017

एक ख्याल

जेहन की पगडंडियों पर चलकर
ए ख्याल,मन के कोरो को छूता है।
बरसों से जमे हिमखंड
शब्दों की आँच में पिघलकर,
हृदय की सूखी नदी की जलधारा बन
किनारों पर फैलै बंजर धरा पर
बूँद बूँद बिखरकर नवप्राण से भर देती है,
फिर प्रस्फुटित होते है नन्हें नन्हें,
कोमल भाव में लिपटे पौधे,
और खिल जाते है नाजुक
डालियों पर महकते
मुस्कुराहटों के फूल,
सुवासित करते तन मन को।
ख्वाहिशों की तितलियाँ
जो उड़कर छेड़ती है मन के तारों को
और गीत के सुंदर बोल
भर देते है जीवन रागिनी
और फिर से जी उठती है,
प्रस्तर प्रतिमा की
स्पंदनविहीन धड़कनें।
एक ख्याल, जो बदल देता है
जीवन में खुशियों का मायना।

            #श्वेता🍁

10 comments:

  1. जेहन की पगडंडियों पर चलकर
    एक ख्याल,मन के कोरो को छूता है.....

    श्वेता जी, खूबसूरती से मन की भाव को आपने आनोखे शब्दों में पिरोया है। बधाई 👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया P.Kजी आपका
      😊😊

      Delete
    2. हमेशा स्वागत है आपका, श्वेता जी।

      Delete
  2. अद्भुत अद्भुत रचना। गुलज़ार साब के लेखन की शैली पूरी पूरी बानगी लिये आपकी यह शानदार रचना दिल को छू गई।


    कश्मीर में सेना के साथ हुई बदसलूकी पर आपकी ओज भरी अद्भुत कविता udtibaat.com पर प्रकाशित हुई है। वीर रस से ओतप्रोत इस शानदार कृति के लिये आपको बधाई। कृपया visit अवश्य करें।

    http://udtibaat.com/कश्मीर-में-सेना-के-जवानों-2/

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका,इतने उत्साहवर्धक शब्दों के लिए अमित जी।

      Delete
  3. ख़याल में बने बिम्ब प्रकृति का राग सुनाते हैं तब मन गदगद हो जाता है। ताज़गी का अनुभव और नवीनता का विस्तार करती पठनीय रचना। बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार रवीन्द्र जी।

      Delete
  4. ख़याल में बने बिम्ब प्रकृति का राग सुनाते हैं तब मन गदगद हो जाता है। ताज़गी का अनुभव और नवीनता का विस्तार करती पठनीय रचना। बधाई।

    ReplyDelete
  5. बहुत बहुत आभार आपका दी

    ReplyDelete
  6. ख्वाहिशों की तितलियाँ
    जो उड़कर छेड़ती है मन के तारों को
    और गीत के सुंदर बोल
    भर देते है जीवन रागिनी
    और फिर से जी उठती है,
    प्रस्तर प्रतिमा की
    स्पंदनविहीन धड़कनें।

    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति संवेदनाओं की ,जीवित करती मानव इच्छा ,आभार।

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...