Saturday 8 April 2017

रोशनी की तलाश

रोशनी की तलाश
---------
मन का घना वन,
जिसके कई अंधेरे कोने से
मैं भी अपरिचित हूँ,
बहुत डर लगता है
तन्हाईयों के गहरे दलदल से,
जो खींच ले जाना चाहते है
अदृश्य संसार में,
समझ नहीं पाती कैसे मुक्त होऊँ
अचानक आ लिपटने वाली
यादों की कटीली बेलों से,
बर्बर, निर्दयी निराश जानवरों से
बचना चाहती हूँ मैं,
जो मन के सुंदर पक्षियों को
निगल लेता है बेदर्दी से,
थक गयी हूँ भटकते हुये
इस अंधेरे जंगल से,
भागी फिर हूँ तलाश में
रोशनी के जो राह दिखायेगा
फिर पा सकूँगी मेरे सुकून
से भरा विस्तृत आसमां,
अपने मनमुताबिक उड़ सकूँगी,
सपनीले चाँद सितारों से
धागा लेकर,
बुनूँगी रेशमी ख्वाब और
महकते फूलों के बाग में
ख्वाहिशों के हिंडोले में बैठ
पा सकूँगी वो गुलाब,
जो मेरे जीवन के दमघोंटू वन को,
बेचैनियों छटपटाहटों को,
खुशबूओं से भर दे।

                        #श्वेता🍁

16 comments:

  1. Replies
    1. आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए बहुत आभार आपका
      P.k ji

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 10 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार यशोदा दी आपका बहुत सारा आपके मान के लिए।

      Delete
  3. Replies
    1. आभार अर्चना जी बहुत शुक्रिया आपका

      Delete
  4. सुन्दर व तार्किक अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका आभार ध्रुव जी बहुत सारा

      Delete
  5. इस तन्हाई और अँधेरे से कहुग ही बहार आना होता है ... राह ढूंढनी होती है ... मन के गहरे पार्ट में सपनों के बीज बपने होते हैं और उन्हें पल्लवित करना होता है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हाँ जी उसी निराशा कुंठा और हताशा से बाहर निकलने का स्वप्न बुनती है मेरी रचना।
      बहुत आभार दिगम्बर जी आपका सुंदर टिप्पणी} के लिए।

      Delete
  6. हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है ... बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत शुक्रिया आभार संजय जी आपके उत्साहवर्धक शब्द़ो के लिए।आपका आना सुखद लगा।

      Delete
  7. आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...