Monday 24 July 2017

बिन तेरे सावन

जाओ न 
सताओ 
न बरसाओ फुहार
साजन बिन
क्या सावन
बरखा बहार
पर्वतों को 
छुपाकर 
आँचल में अपने
अंबर से 
धरा तक 
बादल बने कहार
पिया पिया बोले
हिय बेकल हो डोले 
मन पपीहरा
तुमको बुलाये बार बार
भीगे पवन झकोरे 
छू छू के मुस्काये
बिन तेरे 
मौसम का 
चढ़ता नहीं खुमार
सीले मन 
आँगन में
सूखे नयना मोरे
टाँक दी पलकें 
दरवाजे पे 
है तेरा इंतज़ार
बाबरे मन की 
ठंडी साँसें
सुलगे गीली लड़की
धुँआ धुँआ 
जले करेजा
कैसे आये करार

    #श्वेता🍁

*चित्र साभार गूगल*

13 comments:

  1. बहुत ही सुंदर
    अच्छे रचना

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।

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  2. सीले मन
    आँगन में
    सूखे नयना मोरे
    टाँक दी पलकें
    दरवाजे पे
    भावनाओं का सजीव चित्रण सरलतम शब्दों का चयन और गहरी अनुभूति संवारती रचना बस क्या कहूं? पूरी पोस्ट का एक एक शब्द लाजवाब है. बधाई स्वीकार करें

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    1. आपका बहुत बहुत आभार संजय जी:)

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  3. वाह ... विरह और सावन ... कई बार जब दोनों साथ आ जाएँ तो करार कहाँ आता है ...
    ऐसी रचनाएं तभी जन्म लेती हैं ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी।

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  4. बादल बने कहार....चढ़ता नहीं खुमार.....टाँक दी पलकें .....जले करेजा
    कैसे आये करार....
    सुन्दर शब्दव्यूह! कल्पनाओं को करते साकार!!!!

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    1. जी, बहुत बहुत आभार एवं शुक्रिया आपका विश्वमोहन जी।

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  5. वाह !बहुत खूबसूरत शब्दचित्र !

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी।

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  6. जी, बहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना.को मान देने के लिए।

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  7. बहुत ही सुंदर शब्द रचना के साथ सावन और विरही मन....
    लाजवाब...

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका सुधा जी।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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