Wednesday 9 August 2017

"छोटू"


आज़ादी का जश्न मनाने
के पहले एक नज़र देखिये
कंधे पर फटकर झूलती
मटमैली धूसर कमीज
चीकट हो चुके धब्बेदार
नीली हाफ पैंट पहने
जूठी प्यालियों को नन्ही
मुट्ठियों में कसकर पकड़े
इस मेज से उस मेज दौड़ता
साँवले चेहरे पर चमकती
पीली आँख मटकाता
भोर पाँच बजे ही से
चाय समोसे की दुकान पर
नन्हा दुबला मासूम सा 'छोटू'
किसी की झिड़की किसी
का प्यार किसी की दया
निर्निमेष होकर सहता
पापा के साथ दुकान आये
नन्हें हम उमर बच्चों को
टुकुर टुकुर हसरत से ताकता
मंगलवार की आधी छुट्टी में
बस्ती के बेफ्रिक्र बच्चों संग
कंचे, गिट्टू, फुटबॉल खेलता
नदी में जमकर नहाता
बेवजह खिलखिलाता
ठुमकता फिल्मी गाने गाता
अपने स्वाभिमानी जीवन से
खुश है या अबोधमन बचपना
वक्त की धूप सहना सीख गया
रोते रोते गीला बचपन
सूख कर कठोर हो गया है
सूरज के थक जाने के बाद
चंदा के संग बतियाता
बोझिल शरीर को लादकर
कालिख सनी डेगची और
खरकटे पतीलों में मुँह घुसाये
पतले सूखे हाथों से घिसता
 थककर निढाल सुस्त होकर
बगल की फूस झोपड़ी में
अंधी माँ की बातें सुनते
हाथ पैर छितराये सो जाता।
        #श्वेता🍁
  *चित्र साभार गूगल*

26 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत आभार आपका लोकेश जी।

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  2. कटु यथार्थ‎ का सुन्दर चित्रण‎ .

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका मीना जी।

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  3. छोटू उन लाखों करोड़ों बच्चों का प्रतीक है जो बाल मजदूरी करने को विवश हैं ! बहुत सारी समस्याएँ कानूनी होने से बढ़कर सामाजिक हैं । जिन हाथों में कलम और कापी होनी चाहिये उन हाथों में मजदूर के औजार हैं । दुखद है ! दुर्भाग्यपूर्ण है ! बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति । बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. जी, सर आपने सही विवेचना की ।रचना का मर्म समझने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आभार आपका।

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  4. सत्य का अनावरण करती आपकी बेहद मार्मिक रचना ,लिखते रहिए शुभकामनायें आभार ,"एकलव्य"

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    1. जी, बहुत बहुत आभार आपका एकलव्य जी,आपकी शुभकामनाओं के लिए हृदय से धन्यवाद।

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  5. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका दी।

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  6. छोटू के मजबूत कंधे उठाते फिर रहे हैं परिवार की जिम्मेदारी !!

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    1. जी,बिल्कुल।
      बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका आदरणीय गगन जी।

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  7. छोटू एक शब्दचित्र है जिसमें समाज में व्याप्त घोर असमानता को मार्मिकता की इतनी गहराई दे दी गयी कि हमारी सोई हुई संवेदना ऐसे करोड़ों छोटुओं के प्रति जाग उठे और हम इस चित्र को बदलने में अपनी भूमिका तलाशने लगें। बहुत -बहुत आभार और बधाई श्वेता जी जिनका कोई नहीं उनकी व्यथा को शाब्दिक अभिव्यक्ति में ढालकर समाज को सोचने पर विवश करने के लिए।

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    1. जी, रवींद्र जी बहुत बहुत आभार ए्वं शुक्रिया आपका तहेदिल से काफी दिनों बाद आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पढ़कर मन प्रसन्न हुआ। आपकी शुभकामनाओं के लिए बहुत आभार।

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  8. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना.....
    हमारे समाज का कटु सत्य बयां करती....
    लाजवाब प्रस्तुति ।

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका सुधा जी।
      हृदय तल से धन्यवाद आपका।

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  9. ऐसे कितने ही छोटू प्रतिदिन हमारी नजरों के सामने से गुजरते हैं ।
    अपने स्वाभिमानी जीवन से
    खुश है या अबोधमन बचपना
    वक्त की धूप सहना सीख गया....
    ये रचना सचमुच एक शब्दचित्र की तरह छोटू की तस्वीर हमारी आँखों के सामने ले आई है !

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    1. जी, बहुत बहुत स्नेहिल आभार एवं हार्दिक धन्यवाद आपका मीना जी। आपने सराहनीय प्रतिक्रिया और अच्छा लिखने को प्रेरित करती है।

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  10. मर्मस्पर्शी रचना.....
    हाथों में जिनके,
    जूठे गिलास - प्लेटें हैं ||

    वो भी तो आखिर,
    भारत मां के बेटे हैं ||

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    1. जी, विनोद जी, बिल्कुल सही लिखा आपने
      बहुत सुंदर 👌👌
      बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका विनोद जी।

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  11. जी, बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका राकेश जी मेरी रचना को मान देने के लिए।

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  12. बहुत मार्मिक और दिल छू लेने वाली रचना|

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका अर्चना जी, तहेदिल से आभार आपका।

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  13. सूरज के थक जाने के बाद
    चंदा के संग बतियाता
    बोझिल शरीर को लादकर
    कालिख सनी डेगची और
    खरकटे पतीलों में मुँह घुसाये
    पतले सूखे हाथों से घिसता.... अद्भुत शब्द शिल्प, श्वेताजी! बधाई!!!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका विश्वमोहन जी, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया प्रेरणा देती है और अच्छा लगता लिखने को। तहेदिल से आभार।

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  14. बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ।

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    1. जी, संजय जी बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका तहेदिल से।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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