Monday 13 November 2017

किन धागों से सी लूँ बोलो

मैं कौन ख़ुशी जी लूँ बोलो।
किन अश्क़ो को पी लूँ बोलो।
बिखरी लम्हों की तुरपन को
किन धागों से सी लूँ बोलो।

पलपल हरपल इन श्वासों से
आहों का रिसता स्पंदन है,
भावों के उधड़े सीवन को,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

हिय मुसकाना चाहे ही ना
झरे अधरों से कैसे ख़ुशी,
पपड़ी दुखती है ज़ख़्मों की,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

मैं मना-मनाकर हार गयी
तुम निर्मोही पाषाण हुये,
हिय वसन हुए है तार-तार,
किन धागों से सी लूँ बोलो

भर आये कंठ न गीत बने
जीवन फिर कैसे मीत बने,
टूटे सरगम की रागिनी को,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

    श्वेता🍁

33 comments:

  1. बहुत बेहतरीन कविता

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    1. जी,बहुत बहुत आभार आपका,तहेदिल से शुक्रिया।

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  2. भाव कसक कतरे चुये हैं,
    शब्द शब्द दिल को छुए हैं.
    मन को और कितना खोलूं मै,
    सिल गए होठ अब क्या बोलूं मैं!!!!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

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  3. बहुत भावपूर्ण कविता श्वेता जी ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

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  4. अब किन शब्दों से मैं तौलू बोलो..
    सुंंदर राग अनुराग अनुरोध।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी,तहेदिल से शुक्रिया जी।

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  5. टूटे सरगम की रागिनी को
    किन धागों से सी लूँँ बोलो
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब, भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी रचना....

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    1. बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया आपका सुधा जी।

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  6. हिय वसन हुए हैं तार तार
    किन धागों से सी लूँ बोलो
    वाह ! क्या बात है ! खूबसूरत !! बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सर,आपका आशीष मिला अति प्रसन्नता हो रही।

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  7. हिय मुसकाना चाहे ही न, होठों से झरे फिर कैसे खुशी,
    पपड़ी दुखती है जख़्मों की,किन धागों से सी लूँ बोलो।
    ... टपाक से चिल्लाकर बोलती मुखर रचना।।।
    बधाई और शुभकामनाएँ श्वेता जी।।।।

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    1. बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा आपका P.kji.

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  8. वाह!!!
    रचनाकर्म में विविधता लाने में माहिर आदरणीया श्वेता जी की यह रचना आश्चर्यचकित करती है। एक सरस ,सरल और सुगढ़ रचना जिसमें नवीनता का एहसास कराते नए शब्द और भावों में दर्द का समुंदर। ऐसी रचनाऐं ज़ेहन में अपना माक़ूल स्थान तलाशती हैं। बधाई एवं शुभकामनाऐं। लिखते रहिये।

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    1. बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा,आपके उत्साहवर्धक सराहनीय शब्द ऊर्जा से भर देते है।

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  9. मन को छूते हुए शब्द ... सरस बहता हुआ शब्द प्रवाह ... गुनगुनाता हुआ गीत ...

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    1. बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका नासवा जी।आपकी प्रतिक्रिया सदैव सारगर्भित होती है।

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  10. मन की व्यथा को मुंदरतम शब्दों में व्यक्त करती भावुक रचना.

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय रंगराज जी।तहेदिल से बहुत सारा शुक्रिया आपका।

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  11. मैं मना-मनाकर हार गयी
    तुम निर्मोही पाषाण हुये,
    हिय वसन हुए है तार तार,
    किन धागों से सी लूँ बोलो..

    वाह। मोहब्ब्त के दर्दीले जज़्बातों का इससे बेहतर संजीदा तब्सिरा नहीं पढ़ा। एक बहुत ख़ूबसूरत और तरन्नुम मय रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार,तहेदिल से शुक्रिया आपका अमित जी।आपकी प्रतिक्रिया का सदैव इंतज़ार रहता है। कृपया उत्साह बढ़ाते रहे।

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  12. बहुत ही प्यारी सुन्दर रचना। बधाई।

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    1. बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका अनु जी।ब्लॉग पर स्वागत है आपका।कृपया आते रहियेगा।

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  13. प्रिय श्वेता जी ------- मन के भावों को बड़ी ही भावुकता से पिरोया है | बहुत सुंदर लेखन |

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रिय रेणु जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका सस्नेह।

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  14. बहुत सुन्दर
    बहुत ही प्यारी सुन्दर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नीतू जी,तहेदिल शुक्रिया बहुत सारा।

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  15. बहुत ही अच्छी तरह पिरोया है आपने शब्दों को ।

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया बहुत सारा सोनू जी।

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  16. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, तहेदिल से शुक्रिया आपका मेरी रचना को मान देने के लिए।

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  17. सारा दर्द उत्तर दिया है शब्दों में आपने हूबहू दिल को छू लेने वाली रचना

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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