Wednesday 7 March 2018

नारी : कही-अनकही


जीवन की बगिया की
मैं पुष्प सुरभित सुकुमारी
सृष्टि बीज कोख में सींचती
सुवासित करती धरा की क्यारी

मैं मोम हृदय स्नेह की आँच से
पिघल-पिघल  साँचे में ढलती
मैं गीली माटी प्रेम की चाक में
अस्तित्व भुला घट नेह के भरती

मैं चंदन की लकड़ी घिस-घिस
मन की ज्वाला शीतल करती
मैं मेंहदी की पात-सी पिसकर
साँसों में प्रीति की लाली रचती

मुझ बिन हर कल्पना अधूरी
जगत सृष्टि एक स्वप्न रह जाये
मैं न रहूँ तो शायद लगे यों
प्राण न हो ज्यों तन रह जाये

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"अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस" एक तारीख़ है आधी आबादी के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए,यह जताने के लिए पुरुषसत्ता समाज में उनका भी सम्मान किया जाता है।  बड़ी-बड़ी बयानबाजियों और नारी सुरक्षा के तमाम एक्ट पारित होने के बावजूद अभी भी समाज के कुछ विकृत भेड़ियों से आज भी औरतें, युवतियाँ तो शिकार हैं  ही बच्चियाँ भी सुरक्षित नहीं। दर्द तो इस बात का है कि इन व्याभिचारियों को उचित सजा समय से नहीं मिलती हमारी दोषपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया के आगे लाचार है शिकार महिला वर्ग। क्यों नारी को एक देह के रुप में ही देखा जाता है?  स्वयं अपने बूते हर क्षेत्र में आगे रहने के बावजूद पुरुषों की छत्रछाया में सुरक्षा ढूँढती औरत सच में इतनी ही निरीह है क्या?  चाहे नारी स्वतंत्रता और बदलाव की जितनी भी डुगडुगी पीट ली जाय पर सच तो यही है कि एक स्त्री के लिए समाज की सोच कभी नहीं बदलती।

  ‎‎अपनी श्रेष्ठता,प्रमाणिकता सिद्ध करने के लिए हर बार औरत को प्रमाण देना पड़ता है,अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है। ईश्वर के द्वारा बनाई गयी सर्वश्रेष्ठ कृति नारी कोमल तन-मन की स्वामिनी होती है, पर कभी-कभी महसूस होता है औरत की सृजनात्मक क्षमता ही उसका अभिशाप है इसी शक्ति को कमजोरी बनाकर समाज हथियार की तरह उसी के खिलाफ इस्तेमाल करता है। उसका मानसिक,शारीरिक और भावनात्मक दोहन किया जाता है।
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  नारी अपनी आज़ादी का अर्थ जाने क्यों किचन से छुट्टी, घर की देखभाल से मुक्ति या बड़े-बूढ़ों की सेवा से राहत इत्यादि घरेलू कामों से लगाती है। आज़ादी का व्यापक अर्थ अब तक शायद आधी आबादी के कुछ तबकों की समझ से दूर है। मेरी समझ से "आज़ादी का सही अर्थ अपनी क्रियाशीलता, अपनी सृजनात्मकता,अपनी क्षमता को बिना किसी व्यावधान के उपयोग कर जो आत्मिक खुशी मिलती है उसे महसूस करना है।" मर्यादित या संस्कारों में रहना नारी स्वतंत्रता को कतई कम नहीं करता बल्कि उसमें और तेज उत्पन्न करता है। यह मान लीजिए कि आप की सहनशीलता और दायित्वों का बोध आपकी कार्यक्षमता को निखारता है।  ‎
जो औरतें आज़ादी के नाम पर बेपरवाही का ढोंग करती है, मर्यादाओं को रौंदकर मनचाही ज़िंदगी जीने की महत्वाकांक्षी होती हैं,उन्हें स्वतंत्रता और स्वच्छंदता का अर्थ जब तक समझ में आता है तब तक सब कुछ बिखर चुका होता है। स्वतंत्रता का गलत फायदा उठाकर स्वयं को मिटाकर,पछताती औरतें जीवन की सिलवटों को खोखली ज़िद और दंभ की परतों में छुपाये भीतर ही भीतर दरकती रहती हैं आधुनिकता का मुखौटा पहनकर और अधिकतर कमज़ोर पड़कर, निराश होकर फिर आत्मघाती कदम उठा लेती हैं।

कुल मिलाकर नारी स्वतंत्रता के नाम पर, आधुनिकता के नाम पर पगलायी औरतों को सही चारित्रिक मूल्य समझकर अपनी प्रतिभा को पहचानकर, स्वाभिमान से समाज में अपनी पहचान बनानी होगी। उन्हें समझना होगा के पल्लू  सर से उतार कमर में खोंसकर अपने अस्तित्व को साबित करने को तैयार नारी की चुनौती पुरुष नहीं, सामाजिक कुरीतियाँ हैं। एक पिता,भाई और पति के रुप में पुरुषों के द्वारा मिले सहयोग और हौसले को सकारात्मक ऊर्जा में बदलने से ही नारी उत्थान संभव है न कि आधुनिकता की होड़ में खोकर अपने अस्तित्व को धूमिल करने में।

   - श्वेता सिन्हा
     ७ मार्च २०१८
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24 comments:

  1. वाह! बहुत सटीक, सारगर्भित और सार्थक. सही कहा आपने, नारी चरित्र के सृजन पक्ष , उसकी ममता ,उसका वात्सल्य और उसकी सहिष्णुता को ही कभी कभी उसका दौर्बल्य समझ दुराचारी और कुसंस्कृत कीटाणुओं द्वारा उसे डंसने का प्रयास होता है. आपने आधुनिकता के नाम पर जारी प्रपंचों की भी सही पड़ताल की है. नारी की सम्पूर्ण भूमिका की और संकेत करता आपका ये लेख निश्चय ही पठनीय और अनुकरणीय है. बधाई और आभार!!!

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    1. बहुत-बहुत-बहुत आभार आपका विश्वमोहन जी। निश्चय ही आपके द्वारा समर्थन पाना,सराहना पाना मेरे लिए बहुत सुखद है,मेरा यह प्रयास आपको पसंद आया मन आहृलादित है।
      हृदयतल से शुक्रिया आपके आशीष का।।

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  2. सारगरिभित आलेख
    प्यारी कविता के साथ
    सादर

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    1. बहुत-बहुत आभार दी,आपका स्नेहाषीश पाकर लेखनी अभिभूत है।
      हृदयतल से शुक्रिया आपका।

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  3. बहुत बहुत खूब
    बेहतरीन कविता
    उम्दा आलेख

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  4. नारी का सम्मान ढूंढती सुन्दर प्रस्तुति....
    एक पिता,भाई और पति के रुप में पुरुषों के द्वारा मिले सहयोग और हौसले को सकारात्मक ऊर्जा में बदलने से ही नारी उत्थान संभव है न कि आधुनिकता की होड़ में खोकर अपने अस्तित्व को धूमिल करने में।

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  5. कौन कहता है शब्दो को तुम मौन दो
    क्यू चुप हो तुम आज अपनी ही व्यथा पर
    बनो आज काल रात्री ताण्डव तो करो तुम
    रूप नागिन का भी तो धरो आज नारी तुम
    डसो पापी को दणड दे दो उसे हर पाप का
    मत छोड़ो नारी आज तुम फुफकारना
    आवाज दो अपने अंदर बैठे मौन को
    सीखो आज तुम सिँहनी सी दहाड़ना

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    1. चाह कविवर ! बहुत प्रेरक काव्य लिखा आपने |

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  6. बहुत खूब.
    सारगर्भित रचना श्वेता जी.

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  7. नारी की चुनौती पुरूष नहीं सामाजिक कुरीतियाँ हैं...
    बहुत ही सुन्दर सार्थक और सारगर्भित लेख लाजवाब कविता के साथ.....बधाई श्वेता जी!

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  8. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरूवार 8 मार्च 2018 को प्रकाशनार्थ 965 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  9. बहुत ही प्रभावशाली आलेख,नारी के वास्तविक सम्मान और स्वतंत्रता के मायने खोजती सारगर्भित प्रस्तुति ।

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  10. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08.03.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2903 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  11. वाह!!श्वेता ,बहुत ही खूबी के साथ आपनें सब कुछ कह डाला ...सही है नारी को ही नारी का सम्मान करना होगा पुरुषों द्वारा मिले सहयोग को सकारात्मक उर्जा मेंं बदलना ही होगा ...लाजवाब कविता !!

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  12. बहूत सुंदर आलेख।
    बेहतरीन प्रस्तुति।

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  13. वाह बहुत प्रभावशाली लेखन और चार चांद लगाती आप की रचना....बेहद शानदार प्रस्तुति

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  14. नारी शक्ति है ... प्रेरणा है ... जीवन है ...
    नारी न हो तो शायद दुनिया का अस्तित्व न हो ... जीवन न हो ... सुंदर रचना ...

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  15. लाजवाब कविता के साथ...सारगर्भित लेख

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  16. बहुत सुंदर सटीक और सारगर्भिता से लबरेज लेख सुंदर कविता. बहुत बहुत बधाई हो।लिखते रहो।👍

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  17. बहुत सटीक विश्लेषण स्वेता जी कि पिता,भाई और पति के रुप में पुरुषों के द्वारा मिले सहयोग और हौसले को सकारात्मक ऊर्जा में बदलने से ही नारी उत्थान संभव है न कि आधुनिकता की होड़ में खोकर अपने अस्तित्व को धूमिल करने में।

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  18. जरूरत है महिलाओं को अपनी शक्ति को आंकने की, अपने बल को पहचानने की, अपनी क्षमता को पूरी तौर से उपयोग में लाने की, अपने सोए हुए जमीर को जगाने की....और यह सब उसे खुद ही करना है !क्योंकि आज कोई जामवंत नहीं है जो हनुमान को अपनी शक्तियों का एहसास करवा सके

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  19. यथार्थपरक लेख...., समस्या के विभिन्न पहलुओं पर चिन्तन और निदान के सुझाव . बधाई इतने सुन्दर लेख के लिए .

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  20. प्रिय श्वेता जी सहमत हूँ आपके विचारों से | बहुत ही सार्थक चिंतन से भरा लेख नारी जाति पर व्यापक चिंतन को दर्शाता है | आज अपना रक्षक खुँद बनने की जरूरत है | बहुत सुंदर पद्य और गद्य नारी क्र सम्मान में चार चाँद लगा रहा है | सस्नेह |

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  21. स्त्रियों की समस्याओं का आपने बहुत बारीकी से विश्लेष्ण किया है और समाधान भी प्रस्तुत किया है | बहुत सार्थक लेख ...बधाई श्वेता जी

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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