Saturday 31 March 2018

मूरखता का वरदान


समझदारी का पाठ पढ़
हम अघा गये भगवान
थोड़ी सी मूरखता का
अब तुमसे माँगे वरदान

अदब,कायदे,ढ़ंग,तरतीब
सब झगड़े बुद्धिमानों के
प्रेम,परोपकार,भाईचारा
श्रृंगार कहाये मतिमारों के

इंसानों को इंसा मैं समझूँ
न धर्म-अधर्म का ध्यान रहे
मानवता का दीप जलाऊँ
मन मूढ़ मति अज्ञान रहे

मूरख ही चतुरों के मन के
करते कार्य अनुकूल
माँ लक्ष्मी भी करे सवारी
सभा की रौनक "फूल"

मूर्खदिवस पर एक-दूजे के
अकल नाप मुस्काते है
कौन है कितना बड़ा चतुर
तोल-बोल इतराते है

मूर्ख चालीसा गाइये हंसके
है मूरखता अनमोल खरा
सरल हृदय स्नेह भावयुक्त
निर्मल,निर्झर हिय नेह भरा

ना चाहूँ मैं विद्वान कहाना
हे प्रभु,इतनी कृपा करिये
हर कर मेरी सारी ज्ञानता
हृदय में दया,करुणा भरिये।

     -श्वेता सिन्हा


Thursday 29 March 2018

राष्ट्रधर्म



धर्म के नाम पर 
कराह रही इंसानियत
राम,अल्लाह मौन है 
शोर मचाये हैवानियत

धर्म के नाम पर
इंसानों का बहिष्कार है
मज़हबी नारों के आगे
मनुष्यता बीमार है

खून को पानी बना के
बुझ सकेगी प्यास क्या?
चीत्कार को लोरी बना
कट सकेगी रात क्या?

न बनो कठपुतलियाँ
ज़रा विवेक से काम लो,
राम-रहीम के आदर्श को
न छ्द्म धर्म का नाम दो।

धर्म के नाम पर
मत बाँटो इन्सानों को,
अपने भीतर उग आये
काटो ईष्यालु शैतानों को

लफ़्जों की लकीर खींच
न नफरतों के कहर ढाओ
मार कर विष टहनियों को
सौहार्द्र का एक घर बनाओ

मज़हब़ी पिंज़रों से उड़कर
मानवता का गीत गाओ 
दिल से दिल को जोड़कर
राष्ट्रधर्म का संकल्प उठाओ

    -श्वेता सिन्हा

Wednesday 28 March 2018

एहसास का बवंडर



सूना बड़ा है तुम बिन ख़्वाबों का टूटा खंडहर।
तुमसे ही मुस्कुराये खुशियों का कोई मंज़र ।।

होने लगी है हलचल मेरे दिल की वादियों में।
साँसों को छू रहा है पागल-सा इक समुंदर ।।

पूनम की चाँदनी में मुलाक़ात का मौसम हो।
आकर के तुम निकालो है हिज़्र का जो खंज़र।।

प्यासी ज़मी में दिल की बरसो न बनके बादल।
ग़म धूप की तपन से धड़कन हुई है बंजर ।।

वीरानियों  में  महके सूखे  हुए जो   गुल है।
ख़ामोशियों  में  चीख़ेे   एहसास  के  बवंडर।।


   -श्वेता सिन्हा

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...