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Monday 9 October 2017

उम्र की हथेलियों से


नज़्म

ख़्वाहिशों के बोझ से  
दबी ज़िदगी की
सीली मुट्ठियों में बंद 
तुड़े-मुड़े परों की 
सतरंगी तितलियाँ
अक्सर कुलबुलाती हैंं
दरारों से उंगलियों की 
उलझकर रह जाती हैं।


ढककर हथेलियों से
सूरज की फीकी कतरनें
ढलती शाम के स्याह अंधेरों में
च़राग लिये ढूँढ़ते हैं
बुझे तारे ख़्वाहिशों के
जलाकर जगमगाने को
बोझिल ख़्वाबों की राहदारी को।


उमर की हथेलियों से
फिसलते लम्हों की
चंद गिनती की साँसों पर
तुम्हारी छुअन के महकते निशां हैं
भीगी पलकों के चिलमन में
गुनगुनाती तस्वीर तेरी
कसमसाती धड़कनों की
गूँजती ख़ामोश सदाओं में
एहसास के शरारे से
तन्हाइयों की गलियाँ रोशन हैं।

       #श्वेता🍁


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