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Thursday 1 June 2017

मन का बोझ

मन का बोझ
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         बेचैन करवट बदलती मैं उठ बैठ गयी। तकिये के नीचे से टटोलकर क्लच ढूँढकर बिखरे बालों को समेटकर उस पर लगाया ,थके मन के ,बोझिल आँखों से अंधेरे कमरे में हवा के झोंके से सरसराते परदे के पीछे से खुले आसमान पे चमकता आधा चाँद देखने लगी जो मेरी तरह ही उदास लगा।धीरे से पलंग से उतरकर कमरे से बाहर आ गयी।निःशब्द चलकर छत का दरवाजा खोलकर अलसायी निढाल सी आराम कुर्सी पर पसर गयी।

               बार बार उसका चेहरा आँखों के सामने आ रहा,आज की घटना ने पुरानी गाँठें खोल दी थी। मन के परदे पर चलचित्र की भाँति वो दिन तैरने लगे।
     
                  ऐसा लग रहा कल की ही बात हो कोई। कॉलेज का मेरा अंतिम वर्ष कब आ गया पता ही न चला, मेरी कक्षा में मेरे अलावा दस लड़कियाँ थी ।मैं थोड़ी संकोची,अंतर्मुखी अपने में खोये रहने वाली मितभाषी लड़की थी,बातें हाय हल्लो सबसे करती पर खुलकर बातें करूँ ऐसे दोस्त नहीं बने थे मेरे । अंजु ने दूसरी कॉलेज से B.A आनर्स किया था और M.A में हमारे महिला महाविद्यालय में एडमिशन लिया था।वो मेरे स्वाभाव से अलग खुशमिजाज, सुंदर, चुलबुली, बिंदास जब स्कूटी चलाकर आती तो उसके छोटे लहराते बाल और आत्मविश्वास से भरे चेहरा मुझे बहुत प्रभावित करते।कुछ दिनों मे ही हम अच्छे दोस्त बन गये थे। M.A फाईनल परीक्षा की तिथि घोषित हो चुकी थी।मैं अपनी सखी अंजु के साथ जी जान से पढाई में जुट गयी।

  बहुत दिनों से अंजु कॉलेज नहीं आ रही थी फोन भी बंद था ,बहुत परेशान थी उसे लेकर मैं उसकी परिचित एक दो लड़कियों से उसके बारे में पूछा पर उन्होंने अनभिज्ञता ज़ाहिर की। बहुत गुस्सा आ रहा था उसपे।
मन ही मन सोच रही थी,आने दो उस अंजु की बच्ची को फिर खबर लूँगी।" पूरे दस दिन बाद वो आयी खुशी से चहकती हुयी,बताया उसकी शादी तय हो गयी है।लड़का किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में अच्छे पद पर था मोटी तनख्वाह पाता था।
  उसने कहा," चल आज कॉफी पीते है"
मैंने कहा,"नहीं यार माँ वेट कर रही होगी,मैं उनसे बोलकर आयी हूँ आज पक्का उनके आँखों का टेस्ट करवाने ले जाऊँगी।" पापा को टाईम नहीं मिल पा रहा न।
पर वो नहीं मानी बोली "आज कॉलेज का लास्ट डे है फिर एक्ज़ाम शुरु हो जायेगे और फौरन बाद मेरी शादी तू चल न यार। "
इतना मनुहार करने से मेरा मन भी पिघल गया सोचा आधे घंटे में क्या बिगड़ जायेगा।
           उसकी स्कूटी में उसके पीछे बैठ कर कॉलेज से 5 कि.मी.
दूर एक नामी कॉफी शॉप पहुँची ।छत के एक कोने के टेबल पर चीज़ सैंडविच और दो ब्लैक कॉफी का ऑडर देकर हम बातों में मशरूफ हो गये। हल्की शाम होने लगी थी,अक्टूबर का तीसरा सप्ताह था वो गुनगुनी ठंड सी हो आयी थी।करीब एक घंटे बाद हम वहाँ से निकले,अंजु ने कहा वो मुझे बस स्टॉप छोड़ देगी।

                 अंधेरा होने लगा था कभी इतना लेट नहीं हुआ था मुझे डर लगने लगा कही मेरी आखिरी बस न छूट जाए ,अंजु ये बात जानती थी कि 6 बजे के बाद फिर ऑटो रिजर्व करके जाना पड़ेगा मुझे घर शायद इसी वजह से अंजु बहुत तेज स्कूटी चला रही थी । अब अंधेरा घिरने लगा था स्ट्रीट लाईट्स की कतारें सड़क पे झिलमिलाने लगी थी, बस स्टॉप तक पहुँचने के लिए शॉट कट रास्ते पर वो मुड़ी तो एक झुरझुरी सी फैल गयी बदन में। इस गली से निकलते ही चार कदम पर बस स्टॉप था वरना मेन रोड का लंबा चक्कर लगाकर स्टॉप तक में 15 मिनट चले जाते। बहुत  संकरी-सी गली थी, ये दो बड़े और नामी अपार्टमेंट्स गौतम विहार और अलकनंदा के बीच का पिछवाड़ा था ,अपेक्षाकृत इस तरफ कोई आता नहीं था,गली सुनसान पडी रहती थी। 

"इस तरफ से हम जल्दी पहुँच जायेगे अंजु ने कहा।
"हम्म्म्"मैं चुप थी गली में झुटपुटा अंधेरा था, थोड़ी-बहुत रोशनी कुछ घरों की खुली खिड़कियों से आ रही थी।
गली के मुहाने कुछ ठीक पहले अचानक स्कूटर किसी पत्थर से लगा और उछल पड़ा, डगमगाता  किसी चीज से टकरायी इससे पहले कि कुछ समझ आता  स्कूटी पलट गयी।मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या हुआ।

  5 मिनट बाद अंजु की धीमी आवाज सुनाई दी मुझे पुकार रही थी,मेरे पैर और कुहनी छिल गये थे बैग कंधे से निकलकर दूर गिरा दिखा,मैं लड़खड़ाते कदमों से उसके पास गयी वो भी उठ बैठी हेलमेट की वजह से खास चोट नहीं आयी थी उसे बाँह पर कुरता फटकर झूल गया था गालों के पास रगड़ से खून निकल आया था।
अंजु हिम्मत बटोर कर मेरे सहारे उठी और स्कूटी को देखने लगी,घरों से छनकर आती मध्म रोशनी में देखने पर पता चला स्कूटी की हेडलाईट टूट गयी थी,हैंडिल भी टेढ़ा हो गया था।और कुछ दीख नही रहा था ।

उसने कहा," तू जा तेरी बस की हॉर्न सुनाई पड़ रही मैं भी चली जाऊँगी तू चिंता न कर।"

चप्पल ढूँढकर शरीर में होने वाली पीड़ा को जब्त कर जैसे दो आगे कदम बढ़ी चौंककर ठिठक गयी ।मैं चीख पडी़ तब तक अंजु भी आ गयी देखा सामने एक आदमी औंधें मुँह गिरा हुआ था निश्चल निःशब्द, मुझे चक्कर आ गया,अंजु भी घबरा गयी ,हम दोनों बहुत डर गये थे,पसीने से भींग गयी मैं हाथ पैर काँपने लगे अंजु ने कहा, "तू जा देख बस आ रही है"।मेरे मुँह से एक शब्द न निकला।
उस आदमी को वैसी ही हालत में छोड़कर बस में बैठकर  मैं कैसे घर पहुँची कुछ भी याद नहीं।माँ मेरी हालत देखकर परेशान थी लगातार पूछे जा रही क्या हुआ मैं बस इतना कह पायी कि गट्ठे में गिर पड़ी थी मैं, तबियत खराब हो गयी है कॉलेज में ही,  आराम कर लूँगी तो ठीक हो जाऊँगी। सारी रात छटपटाहट में बीती बार बार वो आदमी आँखों के सामने घूम जाता ,खुद को कोसती रही क्यूँ छोड़ आयी ऐसे हाल में उसे।अंजु सेे कोई संपर्क न हो पाया उस वक्त।

                सुबह सुबह पापा की बड़बड़ाहट सुनी, "जाने क्या हो गया है लोगों को कितने असंवेदनशील हो गये है.माँ ने पूछा तो जोर से पढ़कर  सुनाने लगे,

"अलकनंदा अपार्टमेंट के पीछे वाली गली में एक गरीब मज़दूर गंभीर घायल अवस्था में पाया गया।आधी रात को दस बजे अलकनंदा के सिक्योरिटी गार्ड लघुशंका के लिए जब गया तो इस मज़दूर को देखा फिर उसने पुलिस पेट्रोलिंग वाहन को सूचना दी उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। फिलहाल वो खतरे से बाहर है पर देर से अस्पताल पहुँचाने की वजह से पैर में लगी लगी चोट से खून ज्यादा बह गया टिटनेस का खतरा था इसलिए एक टाँग काट दी गयी है उसके परिवार में उसकी अंधी बूढ़ी माँ के अलावा बीबी और दो छोटी बेटियाँ है।"

    मुझे समझ न आया कि उसके ज़िदा होने कि खबर पे खुश होऊँ या उसके अपाहिज होने का शोक मनाऊँ।किसी से मन का ये बोझ नहीं बाँट पायी।फिर परीक्षा मे डुबो लिया खुद को ,बाद में अंजू.से शादी के समय मिली पर इस बारे में बात नहीं हो पायी और उसकी शादी के बाद उससे सम्पर्क टूट गया।

            वक्त की तह में दब गयी थी ये दुर्घटना पर आज शाम की एक घटना ने फिर से मुझे वहीं लाकर खड़ा कर दिया।
दो सप्ताह के बाद रिश्तेदारी में एक शादी थी जिसमें मुझे सम्मिलित होना था, उसी के  लिए शॉपिग करने बाज़ार जा रही थी ।मुख्य मार्ग के किनारे एक जगह भीड़ देख ऑटो वाला रूक गया उत्सुकतावश मैं भी उतर गयी भीड़ के बीच में देखा तो एक रिक्शा चालक खून से लथपथ बेसुध पड़ा था। लोग बातें करने में मशगुल थे कुछ विडियो बना रहे थे पर मदद के लिए कोई पहल नहीं दीखी। मैंने अपने ऑटोरिक्शा वाले को कहा कि चलो इसे उठाओ तो वो बहाने बनाने लगा कहा,"फालतू पुलिस के लफड़े में फँसना मैडम।मुझे किसी की परवाह नहीं थी मैंने पक्का इरादा कर लिया कैसे भी इसे पहुँचाना है अस्पताल।मैंने वहाँ खडे़ लोगों से कहा ,"सोचो कल आपके परिवार के किसी सदस्य के साथ ऐसा हो जाये और कोई मदद न करे तो कैसा लगेगा??"एक दूसरा रिक्शावाला तैय्यार हो गया साथ चलने को एक दो लोग की मदद से ऑटो में लिटाकर उसे अस्पताल में भर्ती करवाया।पुलिस और अस्पताल की सारी प्रक्रिया पूरी करके घर लौट आयी। मन बहुत व्याकुल है।जाने वो बच पायेगा भी कि नहीं डॉक्टर कह रहे थे बहुत गंभीर हालत है सिर पे चोट आयी है खून काफी बह गया है।खून चढ़ाना पड़ेगा,मेरा ब्लड ग्रुप O+ है सो काम आ गया।
       अचानक सेलफोन का रिंगटोन बजा मैं घबराये मन और थरथराते हाथों से फोन कान से लगाया उधर से आवाज़ आयी,"मैडम आपके पेशेंट को होश आ गया है अब वो खतरे से बाहर है।" पलकें गीली हो गयी,मन से जैसे कोई बोझ कम गया हो।
पूरब के आसमां की लाली मन का उजाला बनकर फैल गयी।

            #श्वेता🍁
   
 



Thursday 11 May 2017

बेबसी


ऊफ्फ्...कितनी तेज धूप है.....बड़बड़ाती दुपट्टे से पसीना पोंछती मैं शॉप से बाहर आ गयी।इतनी झुलसाती गरमी में घर से बाहर निकलने का शौक नहीं था....मजबूरीवश निकलना पड़ा था....
माँ की जरूरी दवा खत्म हो गयी थी इसलिए आना जरूरी था।
सुनसान दोपहर में वीरान सड़को को जलाती धूप और शरीर की हड्डी तक गला डाले ऐसी लू चल रही ।मेरे शहर का पारा वैसे भी अपेक्षाकृत चढ़ा ही रहता है।
   तेजी से कदम बढ़ाती सोच ही रही थी कोई रिक्शा या ऑटो मिल जाता....तभी मेरे सामने आकर ऑटो रूकी। ओहह ये तो मेरे ही एरिया के ऑटो वाले भैय्या थे।मैं मन ही राहत महसूस करती बैठ गयी।गली से थोड़ी दूर मेन रोड पर उन्होनें उतार दिया,उनका मकान दूसरी तरफ बस्ती में था।
      मन ही मन सोचती अभी घर जाकर आराम से ए.सी चलाकर फ्रिज से लस्सी निकालकर बैठेगे।अभी चार कदम चली ही थी कि
रोने आवाज़ सुनी....मैं चौंक कर देखने लगी अभी कौन ऐसे रो रहा....देखा तो वही एक चार मंजिला फ्लैट के नीचे कोने में खड़ी एक लड़की सुबक सुबक कर रो रही है।
पहले तो मैंने अनदेखा किया और आगे बढ़ गयी पर फिर रहा न गया वापस आई चुपचाप उसके पास खडी हो गयी।वो लगातार रोये जा रही थी।छः- सात साल की लड़की थी वो,घुटने तक सफेद फूलों वाली फ्रॉक पहने...जो मटमैले से हो रहे थे...पीठ की तरफ चेन खराब हो गयी थी....इसलिए उघड़ी हुयी थी आधी पीठ तक....
बिखरे भूरे पसीने से लथपथ बाल मुँह पे झूल रहे थे जिसे वो बार बार हटा रही थी....जलती धरती पर सहज रूप पर नंगे पाँव खडी रोये जा रही थी। हाथों  की कसकर मुट्ठियाँ बाँधे कर सीने से लगाये हुए थी।
 मुझे खड़ा पाकर उसने एक क्षण को रोती लाल आँखों से मासूमियत भरकर मेरी ओर देखा और फिर सुबकने लगी।
मेरे पास पानी की बोतल थी जो अब मौसम की तरह गरम हो गयी थी।पर मैंने उससे कहा वो पी ले।उसने सिर न में हिलाया...
फिर मैंने पूछा,क्यों रो रही हो ।तीन चार बार पूछने पर जो कहा वो अन्तर्मन तक चुभ गया।
उसने कहा उसके बापू रिक्शा चलाते है आज पैसा मिला है न उधर से ही पीकर आये है....उन्हें एक पाउच दारु और चाहिए और एक बंडल बीड़ी भी....उन्होंने पैसे दिये है उसे ये सब लाने को....उसने मना किया तो बहुत मारा और बाहर निकाल दिया घर से.....।।कहा जब तक दारु नहीं लाना घर मत आना...।लेकिन वो दारु के ठेके में जाना नहीं चाहती क्योंकि वहाँ भोला है न वो उसको तंग करता है।
उसकी फ्रॉक खींचता है....गालों पर चुटकी काटता है और वो ऐसा करने को मना करती है तो दो चार चाँटे भी लगा देता है। उसकी बात सुनकर मैं सुन्न पड़ गयी।समझ नहीं आया क्या कहूँ....किसे समझाऊँ......उस मासूम को ,उसके शराबी पिता को,ठेके वाले भोला को किसे कहूँ.....मन में विचारों का बबंडर लिये थके कदमों से वापस लौट आयी घर ।

       #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...