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Wednesday 24 January 2018

गणतंत्र यानि...


चलो फिर से देशभक्ति की रस्म़ अदा करते है
जश्न एक दिन की छुट्टी का जैसे सदा करते है

देशभक्ति के गाने सुने झंडा फ़हरते देखे लाइव
वाट्सएप पर तिरंगे चुनकर सब जमा करते है

गणतंत्र और स्वतंत्र  का मतलब समझते नहीं
जो दिला दिला दे मुनाफ़ा उसे ही ख़ुदा करते है

अपशब्द नेता,अभिनेता को कहकर ठहाके लगा
अधिकार और कर्तव्यों पर गर्व हर जगह करते हैं

विविधतापूर्ण संस्कृति से समृद्ध हमारे देश में अनेक त्योहार मनाये जाते हैं। बहुरंगी छवि वाले हमारे देश के राष्ट्रीय त्योहार ही हैं, जो जनमानस की एकता का संदेश प्रसारित करते हैं।
गणतंत्र का मतलब एक ऐसी प्रणाली जो आम जन के सहयोग से विकसित हो।

"गणतंत्र यानि एक ऐसा शासन जिसमें  निरंकुशता का अंत करके आम जनमानस के सहमति और सहयोग से जनता के सर्वांगीण विकास के लिए शासन स्थापित किया गया।"
"गणतंत्र मतलब हमारा संविधान,हमारी सरकार हमारे अधिकार और हमारे कर्तव्य"

संविधान २६जनवरी १९५० मे लागू हुआ वो लिखित दस्तावेज़ है जिसमें हर एक आम और ख़ास के अधिकार और कर्तव्य अंकित है।

साल दर बीत रहे और एक गणतंत्र दिवस के जश्न का दिन आ गया। झंडे फहराकर ,देशभक्ति गीत सुनकर नारे लगाकर मना लेंगे हर बार की तरह।  अब तो सोशल मीडिया पर देशभक्ति का ख़ुमार सबसे ज्यादा छाया रहता हैं। आपने dp नहीं चेंज की स्टेटस नहीं अपडेट किया तो क्या ख़ाक देशभक्त है आप।
ये सब करने वाली एक बड़ी जनसंख्या की अनोखी ख़ूबी ये है कि इनमें  कितने ही लोगों को स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस का मतलब तक नहीं पता यहाँ तक हमारे  तथाकथित अगुआ जनप्रतिनिधि भी अनभिज्ञ है।बार-बार बेचारे कन्फ्यूजन में गणतंत्र की जगह स्वतंत्रता दिवस कह जाते हैं।बच्चों को भी यही लगता है कि दोनों त्योहार गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस एक ही है। बच्चों को उनकी उम्र और छोटी बुद्धि का हवाला देकर झंड़ा फहराना ही प्रमुख है यही बताया जाता है जाने क्यों हम कोशिश भी नहीं करते सही अर्थ समझाने की।

छुट्टी को जमकर मनाने की प्लानिंग पहले ही हो जाती है अगर वीक एंड है तो और अच्छा एक आध दिन की छुट्टी और लेकर कहीं बाहर रिलैक्स हो जाना सबसे शानदार आइडिया होता है। ड्राय-डे होने से ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता है,जिनको जरुरत वो ब्लैक में लेकर जश्न मनायेगें।

इन ख़ुशियों में और एक गणतंत्र दिवस बीत जायेगा फिर से। क्या कभी ऐसा भी दिन आयेगा जब हम देश की ख़ातिर, असहाय ,भूख और लाचारी से लड़ते किसी नागरिक के लिए कुछ सार्थक मदद कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की कोशिश करें।  हमारे द्वारा हमारे लिए बनाया गया संविधान तब सही मायने में फलीभूत होगा जब हम सिर्फ अपने अधिकार की बात न करके अपने कर्तव्यों के बारे में भी सोचे।

   ---- श्वेता

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मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...