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Monday 21 August 2017

मैं रहूँ न रहूँ

फूलेंगे हरसिंगार
प्रकृति करेगी नित नये श्रृंगार
सूरज जोगी बनेगा
ओढ़ बादल डोलेगा द्वार द्वार
झाँकेगी भोर आसमाँ की खिड़की से
किरणें धरा को प्यार से चूमेगी
मैं रहूँ न रहूँ
मौसम की करवटों में
सिहरेगी मादक गुनगुनी धूप
पीपल की फुनगी पर
नवपात लजायेगी धर रक्तिम रूप
पपीहा, कोयल लगायेगे आवाज़
भँवर तितली रंगेगे मन के साज
फूट के नव कली महकेगी
मैं रहूँ न रहूँ
चार दिन बस चार दिन ही
मेरी कमी रूलायेगी
सजल नयनों में रिमझिम
अश्रुओं की बरखा आयेगी
थक कर किसी जीवन साँझ में
छोड़ चादर तन की चली जाऊँगी
मन की पाखी बनके उड़ उड़
यादों को सहलाऊँगी
अधर स्मित मुसकायेगे
मैं रहूँ न रहूँ
    #श्वेता🍁

Wednesday 19 July 2017

ख्यालों का चूल्हा


जगे मन के अनगिनत
परतों के नीचे
जलता रहता है
अनवरत ख्यालों का चूल्हा,
जिस पर बनते हैंं,
पके,अधपके,नमकीन,
मीठे,तीखे ,चटपटे ,जले
बिगड़े ,अधकच्चे
विचारों के व्यंजन,
जिससे पल-पल
बदलता रहता है मिज़ाज
और मिलता रहता है
हर बार एक नया स्वाद
ज़िंंदगी को।
ख़्यालों की भट्टी की धीमी
आँच पर
सुलगते है
कोमल एहसास,
असंख्य ज़ज़्बात के पन्ने
और उनके सुनहरे
लपटों में सेेंंके जाते हैंं
चाश्नी से तरबतर रिश्ते
बहुत एतिहात से
ताकि बनी रहे मिठास
ज़िंदगी की कडुवाहटों की थाली मेंं।
न बुझने दीजिए
ख्यालों के सोंधे चूल्हे
बार-बार नयी हसरतों
की लकड़ी डालकर
आँच जलाये रहिये
ताकि फैलती रहे
नयी पकवानों की खुशबू
और बनी रहे भूख
ज़िंदगी का
एक टुकड़ा चखने की।
    #श्वेता🍁

*चित्र साभार गूगल*

Wednesday 12 July 2017

बुलबुले

जीवन के निरंतर
प्रवाह में
इच्छाएँ हमारी
पानी के बुलबुले से
कम तो नहीं,
पनपती है
टिक कर कुछ पल
दूसरे क्षण फूट जाती है
कभी तैरती है
बहाव के सहारे
कुछ देर सतह पर,
एकदम हल्की नाजुक
हर बार मिलकर जल में
फिर से उग आती है
अपने मुताबिक,
सूरज के
तेज़ किरणों को
सहकर कभी दिखाती है
इंद्रधनुष से अनगित रंग
ख्वाहिशों का बुलबुला
जीवन सरिता के
प्रवाह का द्योतक है,
अंत में सिंधु में
विलीन हो जाने तक
बनते , बिगड़ते ,तैरते
अंतहीन बुलबुले
समय की धारा में
करते है संघर्षमय सफर।

  श्वेता🍁


Monday 10 July 2017

निरर्थक

मन सिंधु को मथकर
जो शब्द के
मोती बाहर आते है
रचकर सादे पन्नों पर
इन्द्रधनुष बन जाते है
मंथन अविराम निरंतर
भावों की लहरे
हर गति से लहराती है
उछलती है वेग से
खुशियों के पूरणमासी को
कभी तट को बिना छुये ही
मौन उदास लौटकर
वापस जाती है
भावों के ज्वार समेटे
अनगिनत विचारों की
गंगा जमना और प्रदूषित धाराएँ
पीकर भी सिंधु
तटबंधों का उल्लंघन नहीं करता
अथाह खारे जलराशि को लिए
कर्म पथ पर अग्रसर है
विचारों की लेखनी थामें
अंतर में निहित मानिक मूँगे
भाव लहर में मचलते है तो
कोई कोई ही पाता है
पर ऐसा नहीं कि
सिंधु की पीड़ा
दूजा समझ नहीं पाता है
तो क्या जिनके हाथ रीते हो
रत्न भंडारों से
कुछ सीपियाँ और शंख
किसी ने मुट्ठी भर रेत ही पायी हो
उन विचारों की लहरों का
आना जााना निरर्थक है??

     #श्वेता🍁




Wednesday 28 June 2017

सौगात

मुद्दतों बाद रूबरू हुए आईने से
खुद को न पहचान सके
जाने किन ख्यालों में गुम हुए थे
जिंदगी तेरी सूरत भूल गये

ख्वाब इतने भर लिए आँखों में
हकीकत सारे बेमानी लगे
चमकती रेत को पानी समझ बैठे
न प्यास बुझी तड़पा ही किये

एक टुकड़ा आसमान की ख्वाहिश में
जमीं से अपनी रूठ गये
अपनों के बीच खुद को अजनबी पाया
जब भरम सारे टूट गये

सफर तो चलेगा समेट कर मुट्ठी भर यादें
कुछ तो सौगात मिला तुमसे
ऐ जिंदगी चंद अनछुए एहसास के लिए
दिल से शुक्रिया है तुम्हारा

             #श्वेता🍁


Tuesday 13 June 2017

भँवर

स्याह रात की नीरवता सी
शांत झील मन में
तेरे ख्यालों के कंकर
हलचल मचाते है
एक एक कर गिरते
जल को तरंगित करते
लहरें धीरे धीरे तेज होती
किनारों को छूती है
भँवर बेचैनी की तड़प बन
खींचने लगते है
बेबस बेकाबू मन सम्मोहित
अनन्त में उतर जाता है
निचोड़कर प्राण  फिर
छोड़ देता है सतह पर
निर्जीव देह जिसे सुध न रहती
बहता जाता है मानो
जीवन के प्रवाह में अंत की तलाश में

#श्वेता🍁




मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...