Showing posts with label देशभक्ति कविता. Show all posts
Showing posts with label देशभक्ति कविता. Show all posts

Sunday 15 August 2021

प्रणाम...(शहीदों को )



करती हूँ प्रणाम उनको,शीश नत सम्मान में है,
प्राण दे,इतिहास के पृष्ठों में अंकित हो गये
जिनकी लहू की बूँद से माँ धरा पावन हुई
माटी बिछौना ओढ़ जो तारों में टंकित हो गये।

चित्रलिखित चित्त लिए चिता सजाते पुत्र की 
क्षीर, नीर, रिक्त आँचल स्मृतियाँ टटोले सूत्र की,
मौली,रोली राखी टीका बचपना धर कंठ में 
देश की रज भाल पर मल जो चंद्रांकित हो गये।

पोंछकर सिंदूर अपना शृंगार करती देश का
देह,मन औ प्रीत समिधा शांति यज्ञ परिवेश का,
तपस्विनी तेजोमयी के चक्षुओं से स्वप्न झरकर,
शिखर पर हिम के तिरंगे संग रेखांकित हो गये।

स्वतंत्रता का गीत दिव्यात्माओं का उपहार है
शौर्य गाथा पीढ़ियों की स्वदेश प्रेम का सार है
नमन है उनको प्रथम, बलिदान जो अज्ञात हैं
हो विलोपित पटल से हृदय में शीर्षांकित हो गये।
------

-श्वेता सिन्हा
१५ अगस्त २०२१


Tuesday 15 August 2017

उड़े तिरंगा शान से

उन्मुक्त गगन के भाल पर
उड़े तिरंगा शान से
कहे कहानी आज़ादी की
लहराये सम्मान से

रक्त से सींच रहे नित जिसे
देकर अपने बहुमूल्य प्राण
रखो सँभाल अमूल्य निधि
है आज़ादी जीवन वरदान
न भूलो उन वीर जवानों को
शहीद हुये जो आन से
बिना कफन की आस किये
सो गये सीना तान के

सत्तर वर्षों का लेखा जोखा
क्या खोया क्या पाया सोचे
क्या कम है गद्दारों से वो नेता
भोली जनता को जो नोचे
जागो उठो खुद देखो समझो
सुन सकते हो कान से
नर नारायण तुम ठान लो गर
सब पा सकते हो मान से

मातृभूमि के रक्षा से बढ़कर
और कोई भी संकल्प नहीं
आत्मसम्मान से जीने का
इससे अच्छा है विकल्प नहीं
आज़ादी को भरकर श्वास में
दो सलामी सम्मान से
जब तक सूरज चाँद रहे नभ पे
फहरे तिरंगा शान से

    #श्वेता🍁

Sunday 13 August 2017

तुम एक भारतवासी हो

*चित्र साभार गूगल*

किसी जाति धर्म के हो किसी राज्य के वासी हो
कभी न भूलो याद रखो तुम एक भारतवासी हो

खेत हमारी अन्नपूर्णा जीवन हरा सुख न्यारा है
साँसों में घुले संजीवन ये पवन झकोरा प्यारा है
पर्वत के श्रृंगार से दमके नभ भू मंडल सारा है
कलकल बहती नदिया मासूम कभी आवारा है
बहुरंगी छटा निराली जैसे देश मेरा वनवासी हो
कभी न भूलो  याद रखो तुम एक भारतवासी हो

पहनो चाहे रेशम ,टाट ,मलमल खद्दर फर्क नहीं
रहलो जैसे महल झोपड़ी रस्ते पर भी तर्क नहीं
गीता,कुरान,बाइबिल,गुरूग्रंथ प्रेम कहे दर्प नहीं
विविध रंग से सजी रंगोली स्वर्ग सुंदर नर्क नहीं
पग पग काबा और मदीना लगे मथुरा काशी हो
कभी न भूलो याद रखो तुम एक भारतवासी हो

कदम बढ़ाओ हाथ मिलाओ नवभारत निर्माण करो
कैसे न जागेगा भाग्य अब सत्य का तुमुलनाद करो
भूख,अशिक्षा,भ्रष्टाचार के समूल वंश का नाश करो
लेके दीप विकास का भारत को स्वच्छ साफ करो
तुम ही कर्मशील तुम जाज्वल्यमान संन्यासी हो
कभी न भूलो  याद रखो तुम एक भारतवासी हो

मस्तक ऊँचा रहे  देश का मान न कोई हर पाये
रख देना तुम आँख फोड़ के न कोई शत्रु ठहर पाये
नापाक इरादे माँ के आँचल पर न कोई कदम आये
शपथ उठा ले तिरंगे की ले गंगाजल ये कसम खाये
तुम ही तो हो देश के रक्षक शिव अंश अविनाशी हो
कभी न भूलो याद रखो तुम एक भारतवासी हो

    #श्वेता🍁

Tuesday 11 July 2017

रक्तपिपासु

क्यूँ झकझोरती नहीं आत्मा
रक्त पिपासु बन बैठे है
क्यूँ हृदयविहीन है इंसां
ये कैसा जेहाद बता न
किस धर्म में लिखा है घात बता
रक्त सने तन मन नराधम
बलि चढ़ाते मासूमों की
कर कैसे मुँह तक ले जाकर
अन्न के निवाले खातेे होगे
कैसे रातों को चैन से
नेपथ्य में गूँजते चीखों को
अनदेखा कर स्वप्न सुनहरे आते होगे
इंसान नही नरभक्षी है जो
इंसानों को खाते है
अधम अधोगति ज्ञात नही
जो मानुष का भोग लगाते है
दंड तो अवश्य संभावित है
आज मिले कि कल हो विनाश
नियम प्रकृति का याद रहे सुनो
कर्म यही भोगकर जाना.होगा
जो तुमने किया धर्म के नामपर
सब कर्ज यही चुकाना होगा
न समझो कमज़ोरी इसको
हमारी भलमानसता है ये
हम जिस दिन हुँकार भरेगे
शिव का रौद्र रूप धरेगे
भस्म हो जायेगा अस्तित्व तुम्हारा
याद रखना ओ जेहाद के ठेकेदारों




Tuesday 2 May 2017

शहीदों के लिए

कडी़ निंदा करने का अच्छा दस्तूर हो गया
कब समझोगे फिर से बेटा माँ से दूर हो गया

रोती बेवाओं का दर्द कोई न जान पाया
और वो पत्थरबाज देश में मशहूर हो गया

कागज़ पर बयानबाजी अब बंद भी करो तुम
माँगे है इंसाफ क्या वीरों का खूं फिजूल हो गया

सह रहे हो मुट्ठीभर भेड़ियों की मनमानी को
शेर ए हिंदुस्तान इतना कबसे मजबूर हो गया

दंड दो प्रतिशोध लो एक निर्णय तो अब कठोर लो
हुक्मरानों की नीति का हरजाना तो भरपूर हो गया

उपचार तो करना होगा इस दर्द बेहिसाब का
सीमा का जख्म पककर अब नासूर हो गया

         #श्वेता🍁


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...