Showing posts with label धागा चाँदनी का..... प्रकृति कविता. Show all posts
Showing posts with label धागा चाँदनी का..... प्रकृति कविता. Show all posts

Tuesday 21 February 2017

धागा चाँदनी का

तोड़कर धागा चाँदनी के
टूटे ख्वाबों को सी लूँ

भरकर चाँद का एक कोना
दर्द सारे आँखों से पी लूँ

सर्द हवाएँ जो तुमको छू आयी
आगोश भर एहसास जी लूँ

बिखरे पलकों से मोतियों की लड़ी
स्याह दामन में सितारे पिरो लूँ

जुगनू के परों पर बाँध ख्वाहिशें
रात का आँचल रंगी कर दूँ
 
    #श्वेता🍁


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...