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Saturday 4 November 2017

सुरमई अंजन लगा

सुरमई अंजन लगा निकली निशा।
चाँदी की पाजेब से छनकी दिशा।।

सेज तारों की सजाकर 
चाँद बैठा पाश में,
सोमघट ताके नयन भी
निसृत सुधा की आस में,
अधरपट कलियों ने खोले,
मौन किरणें चू गयी मिट गयी तृषा।

छूके टोहती चाँदनी तन 
निष्प्राण से निःश्वास है,
सुधियों के अवगुंठन में 
बस मौन का अधिवास है,
प्रीत की बंसी को तरसे, 
अनुगूंजित हिय की घाटी खोयी दिशा।

रहा भींगता अंतर्मन
चाँदनी गीली लगी,
टिमटिमाती दीप की लौ
रोई सी पीली लगी,
रात चुप, चुप है हवा
स्वप्न ने ओढ़ी चुनर जग गयी निशा।

     #श्वेता🍁

Wednesday 1 November 2017

मुस्कान की कनी

लबों पे अटकी
मुस्कान की कनी
दिल में गड़ गयी
लफ्ज़ों की अनी

बातों की उंगलियों से
जा लिपटा मन
उलझकर रह गयी
छुअन में वहीं

अनगिनत किस्से है
कहने और सुनने को
लाज के मौन में सिमटी
कई बातें अनगिनी

सुनो,
रोज आया करो न
आँगन में मेरे 
जाया करो बरसाकर
बातों की चाँदनी

क्या फर्क है कि
तुम दूर हो या पास
एहसास तुम्हारा
भर देता है रोशनी

     #श्वेता🍁

Tuesday 29 August 2017

जाते हो तो....


जाते हो तो साथ अपनी यादें भी लेकर जाया करो
पल पल जी तड़पा के  आँसू बनकर न आया करो

चाहकर भी जाने क्यों
खिलखिला नहीं पाती हूँ
बेचैनियों को परे हटा
तुम बिन  धड़कनों का
सिलसिला नहीं पाती हूँ
भारी गीली पलकों का
बोझ उठा नहीं पाती हूँ

फूल,भँवर,तितली,चाँद में तुम दिखते हो चौबारों में
पानी में लिखूँ नाम तेरा,तेरी तस्वीर बनाऊँ दीवारों में

दिन दिन भर बेकल बेबस
गुमसुम बैठी सोचूँ तुमको
तुम बन बैठे हो प्राण मेरे
हिय से कैसे नोचूँ तुझको
गम़ बन बह जा आँखों से
होठों से पी पोछूँ तुझको

सूनी सुनी सी राहों में पल पल तेरा रस्ता देखूँ
दुआ में तेरी खुशी माँगू  तुझको मैं हँसता देखूँ

चाहकर ये उदासी कम न हो
क्यूँ प्रीत इतना निर्मोही है
इक तुम ही दिल को भाते हो
तुम सा क्यूँ न कोई है
दिन गिनगिन कर आँखें भी
कई रातों से न सोई है

तुम  हो न  हो तेरा प्यार  इस  दिल का  हिस्सा है
अब तो जीवन का हर पन्ना बस तेरा ही किस्सा है

   #श्वेता🍁

Saturday 26 August 2017

मौन हो तुम

मौन हो तुम गुनगुनाते
वीणा मधुर आलाप हो
मंद मंद सुलगा रहा मन
अतृप्त प्रेम का ताप हो
नैन दर्पण आ बसे तुम
स्वर्ण स्वप्नों के चितेरे
प्रीत भरे हृदय घट के
सकल नेह के हो लुटेरे
पाकर जिसे न छू सकूँ
अबोला कोई शाप हो
तेरे नयन आलोक से
सजता मेरा रंग रूप है
साथ चल दो कुछ कदम
लगे चाँदनी सी धूप है
साँसों में जपकर न थकूँ
प्रभु मंत्र सा तुम जाप हो
रंग लिया हिय रंग में तेरे
कुछ नहीं अब बस में मेरे
बाँधे पाश मनमोह है घेरे
बंद पलक छवि तेरे डेरे
अश्रुजल से न मिट सके
वो अमिट अनंत संताप हो
मौन हो तुम गुनगुनाते
वीणा मधुर आलाप हो
     #श्वेता🍁

  


चित्र साभार गूगल

Thursday 17 August 2017

तन्हाई के पल


तन्हाई के उस लम्हें में
जब तुम उग आते हो 
मेरे भीतर गहरी जड़े लिये
काँटों सी चुभती छटपटाहटों में भी
फैल जाती है भीनी भीनी
सुर्ख गुलाब की मादक सुगंध
आँखों में खिल जाते है
गुच्छों से भरे गुलमोहर
दूर तक पसर जाती है रंगीनियाँ
तुम्हारे एहसास में
सुगबुगाती गर्म साँसों से
टपक पड़ती है 
बूँदें दर्द भरी 
अनंत तक बिखरे 
ख्वाहिशों के रेगिस्तान में
लापता गुम होती
कभी भर जाते है लबालब
समन्दर एहसास के
ठाठें मारती उदास लहरें
प्यासे होंठों को छूकर कहती है
अबूझे खारेपन की कहानी
कभी ख्यालों को जीते तुम्हारे
संसार की सारी सीमाओं से
परे सुदूर कहीं आकाश गंगा
की नीरवता में मिलते है मन
तिरोहित कर सारे दुख दर्द चिंता
हमारे बीच का अजनबीपन
शून्य में भर देते है खिलखिलाहट
असंख्य स्वप्न के नन्हे बीज
जिसके रंगीन फूल
बन जाते है पल पल को जीने की वजह
तुम्हारी एक मुस्कान से
इंन्द्रधनुष भर जाता है 
अंधेरे कमरे में
चटख लाल होने लगती है 
जूही की स्निग्ध कलियाँ
लिपटने लगती है हँसती हवाएँ
मैं शरमाने लगती हूँ
छुप जाना चाहती हूँ 
अपनी हरी चुड़ियों
और मेंहदी के बेलबूटे कढ़े 
हथेलियों के पीछे 
खींचकर परदा 
गुलाबी दुपट्टे का 
छुपछुप कर देखना चाहती हूँ
तन्हाई के उसपल में
चुरा कर रख लेना चाहती हूँ तुम्हें
बेशकीमती खज़ाने सा
तुम्हे समेटकर अपनी पलकों पर
सहेजकर हर लम्हें का टुकड़ा
बस तुम्हें पा लेना चाहती हूँ
कभी न खोने के लिए।


#श्वेता🍁

Tuesday 8 August 2017

मोह है क्यूँ तुमसे

                                चित्र साभार गूगल
मोह है क्यूँ 
तुमसे बता न सकूँगी
संयम घट
मन के भर भर रखूँ
पाकर तेरी गंध
मन बहका जाये 
लुढकी भरी
नेह की गगरी ओर तेरे
छलक पड़ी़ बूँद 
भीगे तृषित मन लगे बहने
न रोकूँ प्रवाह 
खुद को मैं
और अब समझा न सकूँगी
ज्ञात अज्ञात 
सब समझूँ सब जानूँ
ज्ञान धरा रहे
जब अंतर्मन में आते हो तुम
टोह न मिले तेरी
आकुल हिय रह रह तड़पे
हृदय बसी छवि
अब भुला न सकूँगी
दर्पण तुम मेरे सिंगार के
नयनों में तेरी
देख देख संवरूँ सजूँ पल पल
सजे सपन सलोने
तुम चाहो तो भूल भी जाओ
साँस बाँध ली
संग साँसों के तेरे
चाहूँ फिर भी
तुमको मैं बिसरा न सकूँगी

      #श्वेता🍁

Thursday 3 August 2017

मन मुस्काओ न छोड़ो आस

मन मुस्काओ न छोड़ो आस

जीवन के निष्ठुर राहों में
बहुतेरे स्वप्न है रूठ गये
विधि रचित लेखाओं में
है नीड़ नेह के टूट गये
प्रेम यज्ञ की ताप में झुलसे
छाले बनकर है फूट गये
मन थोड़ा तुम धीर धरो
व्यर्थ नयन न नीर भरो

न बैठो तुम होकर निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस

उर विचलित अंबुधि लहरों में
है विरह व्यथा का ज्वार बहुत
एकाकीपन के अकुलाहट में
है मिलते अश्रु उपहार बहुत
अब सिहर सिहर के स्वप्नों को
पंकिल करना स्वीकार नहीं
फैले हाथों में रख तो देते हो
स्नेह की भीख वो प्यार नहीं

रहे अधरों पर तनिक प्यास
मन मुस्काओ न छोड़ो आस

अमृतघट की चाहत में मैंने
पल पल खुद को बिसराया है
मन मंदिर का अराध्य बना
खरे प्रेम का दीप जलाया है
देकर आहुति अब अश्कों की
ये यज्ञ सफल  कर जाना है
भावों का शुद्ध समर्पण कर
आजीवन साथ निभाना है

कुछ मिले न मिले न हो निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस

      #श्वेता🍁


Friday 28 July 2017

आँखें


तुम हो मेरे बता गयी आँखें
चुप रहके भी जता गयी आँखें
छू गयी किस मासूम अदा से
मोम बना पिघला गयी आँखें
रात के ख्वाब से हासिल लाली
लब पे बिखर लजा गयी आँखें
बोल चुभे जब काँटे बनके
गम़ में डूबी नहा गयी आँखें
पढ़ एहसास की सारी चिट्ठियाँ
मन ही मन बौरा गयी आँखें
कुछ न भाये तुम बिन साजन
कैसा रोग लगा गयी आँखें
     #श्वेता🍁
*चित्र साभार गूगल*

Monday 24 July 2017

बिन तेरे सावन

जाओ न 
सताओ 
न बरसाओ फुहार
साजन बिन
क्या सावन
बरखा बहार
पर्वतों को 
छुपाकर 
आँचल में अपने
अंबर से 
धरा तक 
बादल बने कहार
पिया पिया बोले
हिय बेकल हो डोले 
मन पपीहरा
तुमको बुलाये बार बार
भीगे पवन झकोरे 
छू छू के मुस्काये
बिन तेरे 
मौसम का 
चढ़ता नहीं खुमार
सीले मन 
आँगन में
सूखे नयना मोरे
टाँक दी पलकें 
दरवाजे पे 
है तेरा इंतज़ार
बाबरे मन की 
ठंडी साँसें
सुलगे गीली लड़की
धुँआ धुँआ 
जले करेजा
कैसे आये करार

    #श्वेता🍁

*चित्र साभार गूगल*

Saturday 22 July 2017

धूप की कतरनें

छलछलाए आसमां की आँखों से
बरसती बैचेन बूँदें
देने लगी मन की खिड़की पर दस्तक
कस कर बंद कर ली ,फिर भी,
डूबने लगी भीतर ही भीतर पलकें,
धुँधलाने लगे दृश्य पटल
हृदय के चौखट पर बनी अल्पना में
मिल गयी रंगहीन बूँदे,
भर आये मन लबालब
नेह सरित तट तोड़ कर लगी मचलने,
मौन के अधरों की सिसकियाँ
शब्दों के वीरान गलियारे में फिसले,
भावों के तेज झकोरे से
छटपटा कर खुली स्मृतियों के पिटारे,
झिलमिलाती बूँदों मे
बहने लगी गीली हवाओं की साँसे,
अनकहे सारे एहसास
दुलराकर नरम बाहों से आ लिपटे,
सलेटी बादलों के छाँव में
बड़ी दूर तक पसरे नहीं गुजरते लम्हें,
बारिश से पसीजते पल
ढ़ूँढ रहे चंद टुकड़े धूप की कतरनें।

    #श्वेता🍁


Thursday 29 June 2017

यादों में तुम

यादों में तुम बहुत अच्छे लगते हो
याद तेरी जैसे गुलाब महकते है
अलसायी जैसे सुबह होती है
नरम श्वेत हल्के बादलों के
बाहों में झूलते हुये,
रात उतरती है धीमे से
साँझ के तांबई मुखड़े को
पहाड़ो के ओट में छुपाकर
और फैल जाती है घाटियों तक
गुमसुम यादें कहीं गहरे
तुम्हें मेरे भीतर
हृदय में भर देती है
दूर तक फैली हुयी तन्हाई
तेरी यादों की रोशनी से मूँदे
पलकों को ख्वाब की नज़र देती है
तुम ओझल हो मेरी आँखों से
पर यादों में चाँदनी
मखमली सुकून के पल देती है
भटकते तेरे संग तेरी यादों मे
वनों,सरिताओं के एकान्त में
स्वप्निल आकाश की असीम शांति में
हंसते मुस्कुराते तुम्हें जीते है,
फिर करवट लेते है लम्हें
मंज़र बदलते है पलक झपकते
मुस्कुराते धड़कनों से
एक लहर कसक की उठकर
आँखों के कोरो को
स्याह मेघों से भर देती है
कुछ बूँदें टूटी हसरतों की
अधूरी कहानियों को भिंगों देती है
जाने ये कैसी बारिश है
जिसमें भींगकर यादें संदली हो जाती है।
   
         #श्वेता🍁

Saturday 24 June 2017

उदासी तुम्हारी

पल पल तुझको खो जीकर
बूँद बूँद तुम्हें हृदय से पीकर
एहसास तुम्हारा अंजुरी में भर
अनकहे तुम्हारी पीड़ा को छूकर
इन अदृश्य हवाओं में घुले
तुम्हारें श्वासों के मध्म स्पंदन को
महसूस कर सकती हूँ।

निर्विकार , निर्निमेष कृत्रिम
आवरण में लिपटकर हंसते
कागज के पुष्प सदृश चमकीले
हिमशिला का कवच पहन
अन्तर्मन के ताप से पिघल
भीतर ही भीतर दरकते
पनीले आसमान सदृश बोझिल
तुम्हारी गीली मुस्कान को
महसूस कर सकती हूँ।

कर्म की तन्मता में रत दिन रात
इच्छाओं के भँवर में उलझे मन
यंत्रचालित तन पे ओढ़कर कर
एक परत गाढ़ी तृप्ति का लबादा,
अपनों की सुख के साज पर
रूँधे गीतों के टूटते तार बाँधकर,
कर्णप्रिय रागों को सुनाकर
मिथ्या में झूमते उदासी को तुम्हारी
महसूस कर सकती हूँ।
       #श्वेता🍁



Saturday 17 June 2017

मौन

बस शब्दों के मौन हो जाने से
न बोलने की कसम खाने से
भाव भी क्या मौन हो जाते है??
नहीं होते स्पंदन तारों में हिय के
एहसास भी क्या मौन हो जाते है??

एक प्रतिज्ञा भीष्म सी उठा लेने से
अपने हाथों से स्वयं को जला लेने से
बहते मन सरित की धारा मोड़ने से
उड़ते इच्छा खग के परों को तोड़ने से
नहीं महकते होगे गुलाब शाखों पर
चुभते काँटे मन के क्या मौन हो जाते है??

ख्वाबों के डर से न सोने से रात को
न कहने से अधरों पे आयी बात को
पलट देने से ज़िदगी किताब से पन्ने
न जीने से हाथ में आये थोड़े से लम्हें
वेदना पी त्याग का कवच ओढकर
अकुलाहट भी क्या मौन हो जाते है??

       #श्वेता🍁

Friday 16 June 2017

एक बार फिर से

मैं ढलती शाम की तरह
तू तनहा चाँद बन के
मुझमे बिखरने आ जा
बहुत उदास है डूबती
साँझ की गुलाबी किरणें
तू खिलखिलाती चाँदनी बन
मुझे आगोश मे भरने आजा
दिनभर की मुरझायी कली
कोर अब भींगने  लगे
भर रातरानी की महक
हवा बनके लिपटने आजा
परों को समेट घर लौटे
परिदें भी अब मौन हुए
तू साँझ का दीप बन जा
मन मे मेरे जलने आ जा
सारा दिन टटोलती रही
सूने अपने दरवाजे को
कोई संदेशा भेज न
तू आँखों मे ठहरने आजा
बेजान से फिरते है
बस तेरे ख्याल लिए
एहसास से छू ले फिर से
धड़कनों मे महकने आजा

     #श्वेता🍁


Tuesday 13 June 2017

तुम्हारे लिए

ज़हन के आसमान पर
दिनभर उड़ती रहती,
ढूँढ़ती रहती कुछपल का सुकून,
बेचैन ,अवश, तुम्हारी स्मृतियों की तितलियाँ
बादलों को देख मचल उठती
संग मनचली हवाओं के
छूकर तुम्हें आने के लिए,
एक झलक तुम्हारी
अपनी मुसकुराहटों मे
बसाने के लिए,
टकटकी लगाये चाँद को
देखती तुम्हारी आँखों में
चाँदनी बन समाने के लिए,
अपनी छवि तुम्हारी उनींदी पलकों में
छिपकर देखने को आतुर
तुम्हारे ख़्यालों के गलियारे में
ख़्वाब में तुमसे बतियाने के लिए,
तुम्हारे लरजते ज़ज़्बात में
खुद को महसूस करने की
चाहत लिए
तन्हाई में कसमसाती,
कविताओं के सुगंधित
उपवन मे विचरती,
शब्दों में खुद को ढ़ूँढ़ती
तितलियाँ उड़ती रहती हैंं,
व्याकुल होकर
प्रेम पराग की आस में,
बस तुम्हारे ही ख़्यालों के
मनमोहक फूल पर।


      #श्वेता


Saturday 3 June 2017

एक रात ख्वाब भरी

गीले चाँद की परछाई
खोल कर बंद झरोखे
चुपके से सिरहाने
आकर बैठ गयी
करवटों की बेचैनी
से रात जाग गयी
चाँदनी के धागों में
बँधे सितारे
बादलों में तैरने लगे
हवा लेकर आ गयी
रातरानी की खुशबू में
लिपटे तेरे ख्याल
हवाओं की थपकियाँ देकर
आगोश में लेकर सुलाने लगे
मदभरी पलकों को चूमकर
ख्वाबों की परियाँ
छिड़क कर
तुम्हारे एहसास का इत्र
पकड़ कर दामन
खींच रही है स्वप्निल संसार में

       #श्वेता🍁






तेरा रूठना


तन्हा हर लम्हें में यादों को खोलना,
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

ओढ़ के मगन दिल प्रीत की चुनरिया
बाँधी है आँचल से नेह की गठरिया,
बहके मलंग मन खाया है भंग कोई
चढ़ गया तन पर फागुन का रंग कोई,
हिय के हिंडोले में साजन संग डोलना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

रेशम सी चाहत के धागों का टूटना
पलकों के कोरों से अश्कों का फूटना,
दिन दिनभर आँखों से दर को टटोलना
गिन गिनकर दामन में लम्हें बटोरना,
पूछे है धड़कन क्यों बोले न ढोलना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।

रूठा है जबसे तू कलियाँ उदास है
भँवरें न बोले तितलियों का संन्यास है,
सूनी है रात बहुत चंदा के मौन से
गीली है पलकें ख्वाब देखेगी कौन से,
बातें है दिल की तू लफ्ज़ो से तोल ना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।
               #श्वेता🍁

Friday 2 June 2017

मन्नत का धागा


मुँह मोड़ कर मन की
आशाओं को मारना
आसां नहीं होता
बहारों के मौसम में,
खुशियों के बाग में.
काँटों को पालना
बहती धार से बाहर
नावों को खीचना
प्रेम भरा मन लबालब
छलकने को आतुर
कराने को तत्पर रसपान
भरे पात्र मधु के अधरों से
आकर लगे हो जब,
उस क्षण प्यासे होकर भी
ज़ाम को ठुकरा देना,
जलते हृदय के भावों को
मुस्कान में अपनी छुपा लेना,
अश्कों का कतरा  पीकर
खोखली हँसी जीकर,
स्वयं को परिपूर्ण बतलाना
दंभ से नज़रें फेर कर गुजरना,
हंसकर मिलने का आडम्बर
भींगी पलकों की कोरों से
टपकते ख्वाबों को देखना,
तन्हा खामोश ख्यालों में
एक एक पल बस तुमको जीना
कितना मुश्किल है
तुम न समझ पाओगे कभी,
पत्थर न होकर भी
पत्थरों की तरह ठोकरों में रहना,
मन दर्पण में तेरी
अदृश्य मूरत बसाकर,
अनगिनत बार शब्द बाणों से
आहत टूटकर चूर होना
फिर से स्पंदनहीन,भावहीन
बनकर तुम्हारे लिए
बस तुम्हारी खातिर,
दुआएँ, प्रार्थनाएं एक पवित्र
मन्नत के धागे के सिवा और
क्या हो सकती हूँ मैं
तुम्हारे तृप्त जीवन में।

         #श्वेता🍁


Friday 26 May 2017

तुम्हारा स्पर्श


मेरे आँगन से बहुत दूर
पर्वतों के पीछे छुपे रहते थे
नेह के भरे भरे बादल
तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श पाकर
मन की बंजर प्यासी भूमि पर
बरसने लगे है बूँद बूँद
रिमझिम फुहार बनकर
अंकुरित हो रहे है
बरसों से सूखे उपेक्षित पड़े
इच्छाओं के कोमल बीज
तुम्हारे मौन स्पर्श की
मुस्कुराहट से
खिलने लगी पत्रहीन
निर्विकार ,भावहीन
दग्ध वृक्षों के शाखाओं पे
 गुलमोहर के रक्तिम पुष्प
भरने लगे है रिक्त आँचल
इन्द्रधनुषी रंगों के फूलों से
तुम्हारे शब्दों के स्पर्श
तन में छाने लगे है बनकर
चम्पा की भीनी सुगंध
लिपटने लगे है शब्द तुम्हारे
महकती जूही की लताओं सी
तुम्हारे एहसास के स्पर्श से
मुदित हृदय के सोये भाव
कसमसाने लगे है आकुल हो
गुनगुनाने लगे है गीत तुम्हारे
बर्फ से जमे प्रण मन के
तुम्हारे तपिश के स्पर्श में
गलने लगे है कतरा कतरा
हिय बहने को आतुर है
प्रेम की सरिता में अविरल
देह से परे मन के मौन की
स्वप्निल कल्पनाओं में
       
        #श्वेता🍁

Sunday 21 May 2017

क्यों खास हो

नासमझ मन कुछ न समझे
कौन हो तुम क्यों खास हो

बनती बिगड़ती आस हो
अनकही अभिलाष हो
हृदय जिससे स्पंदित है
तुम वो सुगंधित श्वास हो
छूटती जीवन डोर की
तुम प्रीत का विश्वास हो

क्या हो कह दो खुद ही तुम
धड़कनों में क्यों खास हो

आधे अधूरे मन की वेदना
मौन में गूँजित हो साधना
न मिलो न पास हो पर,
ख्वाब तुम, तुम ही कल्पना
हर मोड़ पर जीवन के
तुमसे ही मिलती है प्रेरणा
अवनि से अंबर तक फैले
स्नेहिल भाव का आकाश हो

मेरे ख्यालों से न जाना तेरा
तन्हाईयों में तुम क्यों खास हो

मेरे रुप का अभिमान तुम
झुकी पलकों का सम्मान तुम
बड़े जतन से सँभाले रखा है
दिल के कोरे पन्नों पे नाम तुम
तुम हो जब तक चल रही है
धड़कते हो जीवन प्राण तुम
मिटती नहीं जितना भी बरसे
आकुल हृदय की प्यास तुम

तुम्हे महसूस कर इतराऊँ मैं
बता न तुम इतने क्यों खास हो

          #श्वेता🍁


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...