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Thursday 16 February 2017

सोचती हूँ अक्सर..

सोचती हूँ अक्सर
तुम गुजरो कभी
मुझमें होकर
छूकर एहसास मेरे
कभी देखो नज़रभर
कभी चुन लो मुझे
मोतियों की तरह
उठा लो अंजुरी भर
फिर बैठकर
किसी चाँदनी रात की
सपनीली मुंड़ेर पर
प्रेम की डोरी में
टिमटिमाते सितारो की
नन्हें ख्वाहिशों को
गूँथ लो मुझे
और पहन लो
अपने साँसों में
अटूट माला की तरह
तुम्हारी धड़कन बन
लिपटी रहूँ वजूद से
कभी न जुदा होने को

                          #श्वेता🍁



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मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...