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Wednesday 7 February 2018

वो गुम रहे


वो गुम रहे अपने ही ख़्यालों की धूल में
करते रहे तलाश जिन्हें फूल-फूल में

गीली हवा की लम्स ने सिहरा दिया बदन
यादों ने उनकी छू लिया फिर आज भूल में

उसने तो बात की थी यूँ ही खेल-खेल में
पर लुट गया ये दिल मेरा शौक़े-फ़ज़ूल में

होने लगा गलियों का जिक्र आसमां में
फिर उम्रभर अटे रहे लफ़्ज़ों की धूल में

एहसान आपका जो वक़्त आपने दिया
चुभी किर्चियां फूलों की निगाहे-मलूल में

     #श्वेता🍁


निगाहे-मलूल = उदास आँखों में

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...