Saturday 15 April 2017

शाम

सूरज डूबा दरिया में हो गयी स्याह सँवलाई शाम
मौन का घूँघट ओढ़े बैठी, दुल्हन सी शरमाई शाम

थके पथिक पंछी भी वापस लौटे अपने ठिकाने में
बिटिया पूछे बाबा को, झोली में क्या भर लाई शाम

छोड़ पुराने नये ख्वाब अब नयना भरने को आतुर है
पोंछ के काजल ,चाँदनी भरके थोड़ी सी पगलाई शाम

चुप है चंदा चुप है तारे वन के सारे पेड़ भी चुप है
अंधेरे की ओढ़ चदरिया, लगता है पथराई शाम

भर आँचल में जुगनू तारे बाँट आऊँ अंधेरों को मैं
भरूँ उजाला कण कण में,सोच सोच मुस्काई शाम

             #श्वेता🍁

खुशबू


साँसों से नहीं जाती है जज़्बात की खुशबू
यादों में घुल गयी है मुलाकात की खुशबू


चुपके से पलकें चूम गयी ख्वाब चाँदनी
तनमन में बस गयी है कल रात की खुशबू

नाराज़ हुआ सूरज जलने लगी धरा भी
बादल छुपाये बैठा है बरसात की खुशबू

कल शाम ही छुआ तुमने आँखों से मुझे
होठों में रच गयी तेरे सौगात की खुशबू

तन्हाई के आँगन में पहन के झाँझरे
जेहन में गुनगुनाएँ तेरे बात की खुशबू

        #श्वेता🍁

आस का पंछी

कोमल पंखों को फैलाकर खग नील गगन छू आता है।
हर मौसम में आस का पंछी सपनों को सहलाता है।।

गिरने से न घबराना तुम  गिरकर ही सँभलना आता है।
पतझड़ में गिरा बीज वक्त पे नया पौध बन जाता है।।

जीवन के महायुद्ध में मिल जाए कितने दुर्योधन तुमको।
बुरा कर्म भी थर्राये जब रण में अर्जुन गांडीव उठाता है।।

टूटे सपनों के टुकड़ों को न  देख कर आहें भरा करो।
तराशने का दर्द सहा तभी तो हीरा अनमोल बन पाता है।।

     #श्वेता🍁

Friday 14 April 2017

गुलाब

भोर की प्रथम रश्मि मुस्काई
गुलाब की पंखुड़ियों को दुलराई
जग जाओ ओ  फूलों की रानी
देख दिवस नवीन लेकर मैं आई

संग हवाओं की लहरों में इठलाकर
रंग बिरंगी परिधानों में बल खाकर
तितली भँवरों ने गीत गुनगुनाए है
गुलाब के खिले रूख़सारों पर जाकर

बिखरी खुशबुएँ मन ललचाएँ
छूने को आतुर हुई है उंगलियाँ
काश कि कोई जतन कर पाती
न मुरझाती फूलों की कलियाँ

देख सुर्ख गुलाब की भरी डालियाँ
जी डोले अँख भरे रस पियालियाँ
खिल जाते मुख अधर कपोल भी
पिया की याद में महकी जब गलियाँ

          #श्वेता🍁




Thursday 13 April 2017

मेरा चाँद

ओ रात के चाँद
तेरे दीदार को मैं
दिन ढले ही
छत पर बैठ जाती हूँ
घटाओं के बीच
ढ़ूँढ़ती हूँ घंटों
अनगिनत तारे भी गिनती हूँ
झलक तेरी दिख जाए
तुझे छूने को मैं दिवानी
अपनी अंजुरी में भर लेती
कभी उंगलियों के पोरों से
उन कलियों को छू लेती
जहाँ गिरती है चँदनियाँ
उस ओसारे पे रख पाँव
किरणों से मैं खेलूँ
कभी बाहें पसारे
पलकें मूँदे महसूस करती हूँ
तेरा शीतल उजाला मैं
अक्सर बाहों में भर लेती
जी भरता नहीं मेरा
कितना भी तुमको मैं देखूँ
उठा परदे झरोखों के
अंधेरे कमरे के बिछौने पर
तुझे पाकर मैं खुश होती
तकिये पर हर टिकाकर
अपनी आँखों से
जाने कितनी ही बात करती हूँ
तुझे पलकों भरती जाने
कब नींद से सो जाती
तेरी रेशम सी किरणों का
झिलमिल दुशाले को ओढकर
ख्वाब में खो जाती हूँ
मेरे तन्हा मन के साथी
चाँद तुम दूर हो लेकिन
तुम्हें मैं पा ही लेती हूँ।

     .#श्वेता🍁




मेरी पहचान बाकी है

अभी उम्मीद  ज़िदा है   अभी  अरमान बाकी है
ख्वाहिश भी नहीं मरती जब तक जान बाकी है

पिघलता दिल नहीं अब तो पत्थर हो गया सीना
इंसानियत मर रही है  नाम का  इंसान बाकी है

कही पर ख्वाब बिकते है कही ज़ज़्बात के सौदे
तो बोलो क्या पसंद तुमको बहुत सामान बाकी है

कहने में क्या जाता है बड़ी बातें ऊसूलों की
मुताबिक खुद के मिल जाए वही ईमान बाकी है

आईना रोज़ कहता है कि तुम बिल्कुल नहीं बदले
बिना शीशे के भी खुद से मेरी  पहचान बाकी है

            #श्वेता🍁

उदित सूर्य

नीले स्वच्छ नभ पर
बादलों से धुँध के बीच
केसरी रंगों ने
पूरब के क्षितिज को धो डाला
आहिस्ता आहिस्ता
आकाश के सुंदर माथ पर
अलसाता मुस्काता
लाल मुखड़ा  लिये
सूर्य उदित हुआ।
सोयी धरा के पलकों को अपनी
सुनहरी किरणों से चूमकर जगाया
खामोश पड़े कण कण में
स्फूर्ति का संचरण हुआ
किरणों के स्पर्श से ही
सोयी धरा में जीवन का
मौन स्पंदन हुआ
उदिय सूर्य जीवन में
प्राणवायु सदृश है
जिसके बिना जगत नीरवता
में डूबा सुसुप्त,उदास ,स्पंदनविहीन
अनंत तक फैलीअंधेरी गुफा मात्र है।

उदित सूर्य धरा का संजीवन है
सूर्य से ही धरती पर जीवन है।

      #श्वेता🍁

Wednesday 12 April 2017

रात

मेरे बड़े से झरोखे के सामने
दूर तक फैली नीरवता
नन्हें नन्हें दीयों सी झिलमिलती
अंधेरों में लिपटे इमारतों के
दरारों से छनकर आती रोशनी
दिन भर के मशक्कत से थके लोग
अब रैन बसेरे में ख्वाबों में
चलने की तैयारी में होगे
एक अलग दुनिया दिखती है
दिनभर का शोर अब थम गया है
दूर से सड़क के एक ओर
कतारों में सजी पीली रोशनी
राहें अब सुबह तक इंतज़ार करेगी
फिर से राहगीरों को उनकी
मंज़िल तक पहुँचाने के लिए
और नज़र आता है
दूर तक फैला गहन शून्य में डूबा
कुछ कुछ स्याह हुआ आसमां
उस पर चुपचाप मुस्कुराते सितारे
जो लगभग नियत जगह ही उगते है
स्थिर  अचल अनवरत टिमटिमाते
और एक आधा पूरा चाँद
जिसकी रोशनी म़े कभी पीपल के पत्ते
खूब झिलमिलाते है तो कभी
नीम अंधेरे में डूब जाते है
एक अलग ही संसार होता है रात का
खामोश अंधेरों में धड़कती है
ख्वाबों में खोयी बेखबर ज़िदगी
पहरेदारी करता उँघता चाँद
और भोर का बेसब्री से इंतज़ार करती
आहिस्ता आहिस्ता सरकती रात।

       #श्वेता🍁


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...